आदमियत होने की शर्त लिखता हूँ - कविता - विनय विश्वा

मैं कविता लिखता हूँ
इसलिए लोग कहते हैं
कवि हूँ
पर, मैं एक आदमी हूँ
आदमियत होने की शर्त लिखता हूँ
जहाँ
पर्त खोलने की कोशिशें होती हैं
इस अँधकार युग में।

आदिकाल से होते हुए
आधुनिक अन्धकाल तक
जो इक्कीसवीं सदी की
महामारी जनित
मानवीय मूल्यों के
ग्रास का समय है
युद्ध से लेकर मानसिक
यातना तक का समय हैं
इस समय में
कवि
यथार्थ बोध, सम्वेदना लिखता है
जो चहुँओर दिखता है
लेखक! समाज के बदलते परिवेश को
तीव्रगामी  तीक्ष्ण बोधिसत्व को
गढ़ने में लगा हैं
जो क्रंदन के बाद का समय दिखता है
जहाँ एक सुनहरा भविष्य दिखता हैं
जो कवियों की सार्थक
सर्जकता हैं जहाँ एक स्वाभिमान
निर्भीकता हैं।

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

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