संदेश
मेरी माँ - कविता - अनूप अंबर
मेरी ख़ुशी में ख़ुश हो जाती, मेरे दर्द पे वो रोती है। माँ जैसा कोई भी नहीं, माँ ममता की मूरत होती है॥ ख़ुद भूखी रहती है पर, वो पहले मुझे …
हमसफ़र - कविता - शेखर कुमार रंजन
अग्नि को साक्षी मानकर प्रेयसी, सात जन्मों तक वचन निभाऊँगा। अंतरंग ललाम सबब है भार्या, जो मैं तुमसे चित्त लगाऊँगा। मैं तुम्हारे अरमानों…
भागमानी माँ-बाप - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
चूँकि वेद सुबह से शाम तक माँ के फ़ोन का कोई उत्तर नहीं दिया था इसलिए माँ-पिता जी की चिंता दूर पढ़ने गए इकलौते बेटे के प्रति डाँट के रूप…
स्त्री-पुरुष दोनों की भूमिका अलग - कविता - नौशीन परवीन
बहुत सी लेखिकाएँ स्त्रियों की जीवन गाथा लिख रही है हर स्त्रियों की अपनी कहानी होती है। मध्यम वर्ग की स्त्री पुरुषों की पकड़ से स्व…
ज़िंदगी जैसे सोई ग़ज़ल हो गई - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन तक़ती : 212 212 212 ज़िंदगी जैसे सोई ग़ज़ल हो गई, झोपड़ी रात भर में महल हो गई। ख़ूब चर्चा चली, हो गई सब ह…
कविता तुम मेरी साथी सी - कविता - मोहित त्रिपाठी
कविता तुम मेरी साथी सी संग तेल दिया तुम बाती सी, भर कर भावों से मेरा मन ज्योतित जीवन का हर क्षण। कविता तुम मेरी साथी सी अयोध्या म…
किरणें - कविता - चंदन दुबे
फिसल के उतरी आसमाँ से बदरा के सीने पीर धरी गिरि के काँधों से कूद पड़ी किरणे वसुधा की गोद गिरी पत्ते फूलों हर गली उपवन आई अभयारण्य मे…
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर - कविता - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
मैं दिनकर का अनुयायी हूँ ओज भरी हुँकार लिखूँ, देशभक्ति में क़लम डुबती कविता की रसधार लिखूँ। अन्नदाता की मसीहा लेखनी भावों की बहती धारा,…
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर - कविता - गोकुल कोठारी
छोड़े पीछे दीप हज़ारों, सूरज को जब निद्रा आए, अलसाया था जड़ चेतन, वह शब्दों से ख़ूब जगाए। प्रज्वलित है वह उष्ण दिवाकर, धरा धरोहर वाकी है…
रामधारी सिंह 'दिनकर' - कविता - आर॰ सी॰ यादव
प्रबल लेखनी के सर्जक तुम, सुंदर शब्दों के शिल्पकार। 'रेणुका' 'रसवन्ती' 'द्वंद्वगीत', 'कविश्री' की हुँक…
हे जनमानस के राष्ट्रकवि! - कविता - राघवेंद्र सिंह | रामधारी सिंह 'दिनकर' पर कविता
साहित्य धरा के नलिन पुष्प, वसुधा पर भूषित प्रवर अंश। है नमन तुम्हें दिनकर उजास, हो दीप्तिमान तुम काव्य वंश। सौंदर्यमयी आभा, विभूति, नभ…
जय दिनकर - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल | रामधारी सिंह 'दिनकर' पर कविता
जन-जन की कड़क वाणी हो तुम, हिंदी की प्रखर अमर कहानी हो तुम। कीर्ति तुम्हारी बने गगनचुंबी शिखर, साक्षात रवि सी आभा है तेरी दिनकर॥ भारत …
प्रेम और उसकी यादें - कविता - मयंक मिश्र
प्रेम... वही जिसके सिर्फ़ उदाहरण होते है, क्योंकि प्रेम की नहीं होती हैं परिभाषाएँ! जैसे, मेंढकों को बोलने के लिए ज़रूरी होती है बरसात…
नदी व घाट - कविता - सुनीता भट्ट पैन्यूली
जीवन नदी है और गुरू घाट या पड़ाव, जो प्रतिबद्ध हैं सदियों से बिगड़ैल नदियों का रूख मोड़ने में... गुरु नदी में बहती अनचाही खरपतवार या …
राजू श्रीवास्तव : विनम्र श्रद्धांजलि - कविता - आर॰ सी॰ यादव
देकर हँसी हर जन को तुम, आसमानी हो गए हो। छोड़कर तुम इस जहाँ को, उस जहाँ के हो गए हो॥ अश्रुपूरित नेत्र सबके, सब विकल, व्याकुल हृदय हैं…
हास्य सम्राट राजू श्रीवास्तव को श्रद्धांजलि - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
हास्य गगन विहग उन्मुक्त उड़न, मुख अरुण किरण मुस्काया है। अवसाद ग्रस्त करता गुलशन, बस शाम ढले मुरझाया है। भरता उड़ान नभ हास्य क्षित…
हे हास्य व्यंग के महारथी! - कविता - राघवेंद्र सिंह | राजू श्रीवास्तव पर श्रद्धांजलि कविता
हे हास्य व्यंग के महारथी! हे कला जगत के पुष्परत्न! है नमन तुम्हें करता भारत, मुखमण्डल तुम ही हर्ष यत्न। तुम स्वयं तालियों की आहट, तुम …
भूल - हाइकु - जितेन्द्र कुमार
एक भूल से, भूल जाते हैं लोग सारी ख़ूबियाँ। नहीं रचते हम नूतन भव बग़ैर भूल। ज्ञात है मुझे, पेंसिल की ईज़ाद भूल के लिए। नहीं बनते, यायावर ध…
आँखों की महिमा - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
आँखों का है खेल निराला, सुन लो भैया सुन लो लाला। आँखों का काजल लुट जाए, तुमको पता नहीं चल पाए॥ जब हम कभी दुखी हो जाएँ, आँखों में आँसू …
आकांक्षा - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
नीव की ईट एक तरफ़ा प्रेमी की प्रीत दबा ही दी जाती है एक उठाता लंबी इमारत का बोझ दूजा उठता कुछ न कह पाने की सोच दोनों इतना दब जाते हैं श…
तब याद तुम्हारी आई - कविता - ज्योत्स्ना मिश्रा 'सना'
जब झूमी कहीं बयार घटाएँ नभ में छाईं, तब याद तुम्हारी आई निंदिया की गोदी में सोई स्वप्नो से नाता जोड़ लिया, स्मृतियाँ जागी अंतर की आशा …
तुम मेरे सबसे समीप हो - कविता - बिंदेश कुमार झा
तुम मेरे सबसे समीप हो फिर शब्दों की ध्वनि का क्या? आत्मप्रेम का सम्मान मिलता है, फिर व्यथा को साहस ही क्या? यह जीवन जब सागर समान था, त…
दुख की सीमा घनीभूत है - कविता - संजीव चंदेल
दुख की सीमा घनीभूत है, चारों ओर कंद्रन रोदन है। ग़म की काली रात है देखो, ये कैसा उत्पीड़न है। मन कितना उद्वेलित है, हर के जीवन में चिंत…
चश्म-ए-चिराग़ जलाए मैंने - ग़ज़ल - महेश 'अनजाना'
चश्म-ए-चिराग़ जलाए मैंने, घर ना जले बचाए मैंने। किसी ने चिराग़ जो बुझाई, आदतन फिर जलाए मैंने। तूफ़ाँ ने क़यामत जो ढाया, दामन में है समा…
आओ सब एक हो चले - कविता - दीपक राही
मैं कहूँगा, आओ सब एक हो चले। अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ चले, फिर कोई आएगा, आपके इरादों को, कुचल कर चला जाएगा, मैं फिर भी कहूँगा, आओ सब …