आओ सब एक हो चले - कविता - दीपक राही

मैं कहूँगा,
आओ सब एक हो चले।
अपने लक्ष्य की और
आगे बढ़ चले,
फिर कोई आएगा,
आपके इरादों को,
कुचल कर चला जाएगा,
मैं फिर भी कहूँगा,
आओ सब एक हो चले।
सब कुछ भुलाकर,
ख़ुद को निशावर कर,
जो आगे बढ़ जाएगा,
वहीं इंक़लाब लाएगा,
फिर कोई आएगा,
आपके हौसलें को गिराएगा,
मैं फिर भी कहूँगा,
आओ सब एक हो चले।
हमारी हिम्मत से अगर जो
टकराएगा,
वह ख़ुद भी चैंन की नींद,
कहाँ सो पाएगा,
फिर कोई आएगा,
आपकी आवाज़ को दबाएगा,
मैं फिर भी कहूँगा,
आओ सब एक हो चले।
अगर कोई हमें तोड़ने,
की बात करेगा,
दबी हुई आवाज़ में,
अपने ही गीत गाएगा,
फिर मैं कहूँगा,
इनको ही तोड़ दो।

दीपक राही - जम्मू कश्मीर

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