मेरी ख़ुशी में ख़ुश हो जाती,
मेरे दर्द पे वो रोती है।
माँ जैसा कोई भी नहीं,
माँ ममता की मूरत होती है॥
ख़ुद भूखी रहती है पर,
वो पहले मुझे खिलाती है।
मेरी मुस्कान को देख के वो,
अपने ग़म को भूल जाती है॥
गंगा जैसी निर्मल है वो,
सदा शांत ही रहती है।
उसकी आँखों में ममता की,
सरिता निस दिन बहती है॥
उंगली पकड़ कर जिसने,
हमको चलना सिखलाया है।
मैं जो भी हूँ तेरे दम से हूँ,
तेरे त्याग भुला नहीं पाया हूँ॥
मुझको मंदिर जाने की ज़रूरत क्या?
मेरे घर में ही देवी रहती है।
उसके चरणों में चारो धाम है,
ये सारी दुनियाँ कहती है॥
अनूप अंबर - फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)