आँखों की महिमा - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव

आँखों का है खेल निराला,
सुन लो भैया सुन लो लाला।
आँखों का काजल लुट जाए,
तुमको पता नहीं चल पाए॥

जब हम कभी दुखी हो जाएँ,
आँखों में आँसू आ जाएँ।
और ख़ुशी के मौके पर भी,
आँख हमारी नीर बहाएँ॥

चोट लगे तो आँखें रोतीं।
नींद आए तो आँखें सोतीं,
आँखों से आँखें मिल जाए।
दिल का चैन तभी लुट जाए॥

आँखों-आँखों में ही देखो।
प्यार मोहब्बत हो जाती है,
आँखों से जब होंए इशारे,
सुनो मोहब्बत हो गई प्यारे॥

जब मोहब्बत हो जाती है,
नींद आँखों की उड़ जाती है।
आँखें जो हमसे शरमाएँ,
लज्जा से पलकें झुक जाएँ॥

पत्नी जब आँखें मटकाए,
जेब पति की कट ही जाए।
पत्नी को ख़ुश रखना है तो,
उसकी आँखों में बस जाएँ॥

पत्नी जब ग़ुस्सा हो जाए,
और पति को आँख दिखाए।
पत्नी को ख़ुश करना है तो,
पति आँखों को तुरत झुकाए॥

जब हम कभी दुखी हो जाएँ,
आँखों में आँसू आ जाएँ।
और ख़ुशी के मौके में भी,
आँख हमारी नीर बहाए॥

अखिलेश श्रीवास्तव - जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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