हमसफ़र - कविता - शेखर कुमार रंजन

अग्नि को साक्षी मानकर प्रेयसी,
सात जन्मों तक वचन निभाऊँगा।

अंतरंग ललाम सबब है भार्या,
जो मैं तुमसे चित्त लगाऊँगा।

मैं तुम्हारे अरमानों की कांता,
सिर आँखों पर बिठाऊँगा।

ग़लती चाहे तुम्हारी हो इष्टा,
पर दोष न तुझपे लगाऊँगा।

मुझपर विश्वास करो प्रियतम,
हर दशा में साथ निभाऊँगा।

कद्र करूँगा हर भावनाओं की तेरी,
प्रतिमान पति बनकर दिखाऊँगा।

तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में हो हमसफ़र,
जीर्णावस्था तेरे संग हर्ष से बिताऊँगा।

एक दिन दिल की धड़कनें थम जाएगी प्रिया,
तब हमसफ़र जग से अलविदा हो जाऊँगा।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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