भागमानी माँ-बाप - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी

चूँकि वेद सुबह से शाम तक माँ के फ़ोन का कोई उत्तर नहीं दिया था इसलिए माँ-पिता जी की चिंता दूर पढ़ने गए इकलौते बेटे के प्रति डाँट के रूप में प्रकट हुई। मित्र मंडली में मदहोश वेद अपने जन्मजात प्राप्त सदाचार भूलने सा लगा था इसलिए माँ-पिता को झट से ग़ुस्से में जवाब देने में नहीं कतराया‌। उसी ग़ुस्से के भावमुद्रा में वह चौराहे से अपने हॉस्टल तक पहुँचने के लिए एक टेम्पो में ज्यों ही बैठा तो पूर्व से बैठे मुसाफ़िर कुछ कौतूहलपूर्ण विषय पर गंभीरता से चर्चा करते मिले मानो उस विमर्श का निर्णय जगत का अपरिमित हित करने वाला हो। पान खाया हुआ प्रौढ़ दूसरे युवा से केरल संबद्ध बात कह रहा था कि वहाँ की प्रशासनिक व्यवस्था उत्तमोत्तम है। वहाँ पान-सुपारी का भी खुलेआम प्रयोग दण्डनीय अपराध है और शिक्षा स्थिति सबके लिए एकरूपता से श्रेष्ठ है। पर बनारस को देखो तो इस वेद-विद्वान के गढ़ में गजेड़ी, शराबी और लुच्चे-लफंगे हर गली में स्वतंत्र अपनी सत्ता फैलाते मिल जाएँगे। और यह सब करता कौन है? आश्चर्य से वेद और युवक उस प्रौढ़ को एक टक सुन रहे थे। आगे बात बढ़ाते हुए प्रौढ़ सत्यता के परिमापन में शत प्रतिशत खरा उतरा हुआ कारण कहता है; आज का विद्यार्थी।
माता-पिता दूर भेजते हैं पढ़ने की रीति सोचकर और घर से हर संभव व्यवस्था हो ही जाती है और यहाँ पढ़ने के नाम पर लड़के और लड़कियाँ दोनों समान रूप से मौज उड़ाते मिल जाएँगे। भैया, देखता ही कौन है उन्हें? कोई रोक-टोक जैसी बात भी नहीं। बच्चे बाहर निकलते ही दोस्त-यार के चंगुल में फँसे माता पिता से गुर्राने लगते हैं। बहुत कम ऐसे भागमानी माँ-बाप होंगे, जिनके बच्चे आज के समय में सही रास्ते पर चलकर उनका सम्मान बढ़ाते हो।
सहसा वेद का हॉस्टल आ गया और वह टम्पो से कुछ बदला-बदला सा उतरता है; मानो प्रौढ़ की बातों ने वेद के चित् को गंगा जल से साफ़ किया हो। वेद गंभीर नैतिकता का दृढ़ संकल्प ले आगे बढ़ा और वेद का अल्हड़पना और माता-पिता से कदाचार और मनमौजीपन का व्यवहार आदि को पश्चाताप के पवित्र सरिता में धो-धो कर मानो वेद अपने माँ-बाप को भागमानी बनाने को उत्साहित हो रहा हो।

ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्यप्रदेश)

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