ज़िंदगी जैसे सोई ग़ज़ल हो गई - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता

अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
तक़ती : 212  212  212

ज़िंदगी जैसे सोई ग़ज़ल हो गई,
झोपड़ी रात भर में महल हो गई।

ख़ूब चर्चा चली, हो गई सब हवा,
बात आई गई आज कल हो गई।

जो भी सपने बुने, हो गए गुम कहीं,
नींद में जैसे कोई ख़लल हो गई।

मुस्कुराना तुम्हारा ग़ज़ब ढा गया,
एक मुश्किल रही, वो भी हल हो गई।

आज दुनिया हमें फिर लुभाने लगी,
ज़िंदगी एक चर्चित ग़ज़ल हो गई।

नागेंद्र नाथ गुप्ता - ठाणे, मुंबई (महाराष्ट्र)

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