स्त्री-पुरुष दोनों की भूमिका अलग - कविता - नौशीन परवीन

बहुत सी लेखिकाएँ
स्त्रियों की जीवन गाथा 
लिख रही है 
हर स्त्रियों की अपनी 
कहानी होती है।

मध्यम वर्ग की स्त्री
पुरुषों की पकड़ से 
स्वतंत्र नहीं 
उच्चवर्गीय स्त्री 
अपनी सुविधानुसार
फ़्रांस, अफ्रीका, कनाडा 
यात्रा पर है।

क्या औरत होने का सुख 
सुविधा या असुविधा से हैं?
नहीं दोनों ही 
तकलीफ़ देह है। 

मैं तो कहूँगी 
असल मायने में
पुरुषों के लिए स्त्री एक
पालतू पशु है 
जिसे वे जब चाहे
जहाँ चाहे बाँध सकते है।

अरस्तू का कहना हैं कि 
औरत केवल प्रदार्थ है 
जबकि
पुरुष गति है।

मैं तो कहती हूँ
औरत एक शोपीस है
जिसे पुरुष जब चाहे निहारे
जब चाहे बंधी बना ले।

आज का समाज 
कितना भी बदल जाए
लेकिन स्त्री-पुरुष 
दोनों की भूमिका 
आज भी समान नहीं है।

उस युग और इस युग में
एक स्त्री सिर्फ़ और सिर्फ़
पुरुष की 
सेविका ही रहेगी।

नौशीन परवीन - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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