संदेश
छवि (भाग १७) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१७) धर्म निभाया रामचंद्र ने, धारण कर के सत्य को। सत्य-शक्ति से मात दिलाया, दस ग्रीव असत्य को।। कर्तव्य-त्याग पालन कर के, रामराज्य काय…
सिंहनी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
स्वर्ण की ज़ंजीर बाँधे, स्वान फिर भी स्वान है। धूल धूषित सिंहनी, पाती सदा सम्मान है। आत्मनिर्भर स्वाभिमानी, शौर्य ही पहचान है। हार ना …
पीढ़ी का अंतर - लघुकथा - मंजिरी 'निधि'
हैलो! कैसी है? तबियत तो ठीक है ना? रोहिणी ने कल्पना से पूछा। कल्पना बोली हाँ बस ठीक ही हूँ । बेटा-बहु बच्चों के साथ आज नखराली ढाणी गए …
श्राप यह स्वीकार - कविता - डॉ॰ गीता नारायण
कृष्ण ने कहा गंधारी से; माता, श्राप यह स्वीकार। ना लाना मन में कोई ग्लानि और आत्म-धिक्कार। तुम्हारा श्राप यह स्वीकार। यदुकुल में जब म…
मेरी संगिनी - कविता - सुनील माहेश्वरी
तुम्हीं मेरी प्रेरणा, तुम ही मेरा विश्वास हो, तुम मेरी संगिनी। मेरे खोए आत्मविश्वास को हमेशा जाग्रत करती हो, तुम मेरी संगिनी। चाहे परि…
माँ का प्रेम - कविता - मनस्वी श्रीवास्तव
ना होकर भी जो संग मुझमे निहित साकार है, मेरा रूप रंग मनोवृत्ति सब जो भी आकार है। माँ ही तो अलंकार है मेरे चित्त की चित्रकार है। मन की …
नशा मुक्ति - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता'
ख़ुद भी जागें औरों को जगाएँ, नशामुक्ति अभियान चलाएँ। भूलवश करें न ऐसी करतूत, रहे ना जिससे सेहत मज़बूत। अपनी भूलों को कर क़बूल, अपनाएँ जीव…
मैं एक लम्हा भी ख़ुद से न मिल सका तन्हा - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
अरकान : मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 1212 1122 1212 22 मैं एक लम्हा भी ख़ुद से न मिल सका तन्हा, वो मेरे साथ रहा जब भी मैं…
छवि (भाग १६) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१६) सूर्य एक है चंद्र एक है, धरती-अंबर एक है। मानव जाति एक हैं जग में, भिन्न विचार-विवेक हैं।। भिन्न-भिन्न हैं भाषा सबके, संस्कृतियाँ…
शरद पूर्णिमा - कविता - डॉ॰ देवेंद्र शर्मा
दुग्ध धवल सम मधुर चाँदनी, बरस रही है जल थल में, कौन बचा स्नात होने से, अवनि और अंबर तल में। धीमे-धीमे मलय समीरण, करता कोंपल कलि से बात…
हर सम्त इन हर एक पल में शामिल है तू - ग़ज़ल - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाईलुन फ़अल फ़ाईलुन फ़अल तक़ती : 221 222 12 222 12 हर सम्त इन हर एक पल में शामिल है तू, हर गीत मेरी हर ग़ज़ल में शामिल है तू।…
शक्तिहीन - लघुकथा - डॉ॰ चंद्रेश कुमार छतलानी
वह मीठे पानी की नदी थी। अपने रास्ते पर प्रवाहित होकर दूसरी नदियों की तरह ही वह भी समुद्र से जा मिलती थी। एक बार उस नदी की एक मछली भी प…
अद्वितीय भारतीय सेना - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
जिस देश की सेना का देख अद्भुत साहस, बडे़ से बडे़ दुश्मनों के हौसले पस्त हो जाते हैं। बात हो जब देश के फौजों की जाँबाज़ी का, जो हँसते…
सुमन सुरभित फिर से होंगे - कविता - कमला वेदी
सुमन सुरभित फिर से होंगे, बहारें फिर से आएँगी। मलयानिल फिर बहेगी, चमन फिर से हरा होगा। चिराग़ जलाए रखना, हौसला ना टूटे मन का।। नदियाँ फ…
अपने क़दमों को बढ़ाती हूँ तो जल जाती हूँ - ग़ज़ल - शमा परवीन
अरकान : फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1122 1122 22 अपने क़दमों को बढ़ाती हूँ तो जल जाती हूँ, प्यार की रस्म निभाती ह…
प्यार का क़िस्सा - मुक्तक - रमाकान्त चौधरी
१) मैं अपने प्यार का क़िस्सा सुनाने तुमको आया हूँ, हुआ क्या-क्या मोहब्बत में बताने तुमको आया हूँ। ज़रा तुम गौर से सुनना मोहब्बत के फ़साने…
संघर्ष की ज्वाला - कविता - निकिता मिश्रा
ये ज्वाला यूँ धधकती है, न जाने कितनों को ये सबक़ देती है। सुभाष चन्द्र में भी धधकती एक ज्वाला थी, ये ज्वाला क्रांति के लिए उनमे भड़की थी…
स्याही - कविता - अनूप मिश्रा 'अनुभव'
सबूत देता भी क्या मैं, अपनी बेगुनाही का। उनका इरादा था देखना जब, मंज़र मेरी तबाही का।। वक़्त रक़ीबों का था आया, और मेरा लद चुका था। क़ीमत …
सिर्फ़ तुम से प्यार होना चाहिए - ग़ज़ल - दिलशेर 'दिल'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 212 सिर्फ़ तुम से प्यार होना चाहिए, रोज़ आँखें चार होना चाहिए। सात जन्मों का नहीं …
सभी ठीक होगा एक दिवस - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
हर आपद में रख धीरज पथ, साहस संबल संयम निर्भय, यायावर बन बढ़ो सत्य रथ, ठीक होगा एक दिन समझ। आसान नहीं साफल्य लक्ष्य, हैं दुर्गम पथ…
चावल उबला पीच रहा है - गीतिका - अविनाश ब्यौहार
चावल उबला पीच रहा है, माली पौधे सींच रहा है। क़ातिल सा अंधेरा देखा, एक किरण को भींच रहा है। सूरज ने बादल जब देखा, अपनी आँखें मींच रहा ह…
छूकर मैंने तुझको - कविता - आदेश आर्य 'बसन्त'
मेरा तुझको छूना अपने नयनों से, कोई ग़लती तो नहीं कर दी मैंने। नेत्र नील विशाल जलधि सम देखूँ आँखें, नम तो नहीं कर दी मैंने। तेरा मुझको …
प्रेम करने वाले प्रेमी - गीत - संतोष कुमार
प्रेम करने वाले प्रेमी, पागल होते हैं, वो तो प्रेम रोग से ही, घायल होते हैं। उन्हें क्या ख़बर, कुछ न आए नज़र, वो जाएँ जिधर, कोई न करे क़…
बेटी की बिदाई - कविता - बृज उमराव
आशीर्वचन तुमको प्रेषित, तुम आजीवन ख़ुशहाल रहो। कष्टों का नामोंनिशाँ न हो, दुःख का कोई आघात न हो।। नाज़ों से हर पल पली बढ़ी, खरोंच न तु…
मन - कविता - सूर्य मणि दूबे 'सूर्य'
धरा का धरातल धरा ही रहा, मन आसमानी पवन संग चला। बादलों की हवाई सवारी लिए, बेअन्तक अनन्तक गगन तक चला। निरन्तर खग वृंद विचरते रहे, कुछ त…