पीढ़ी का अंतर - लघुकथा - मंजिरी 'निधि'

हैलो! कैसी है? तबियत तो ठीक है ना? रोहिणी ने कल्पना से पूछा।
कल्पना बोली हाँ बस ठीक ही हूँ । बेटा-बहु बच्चों के साथ आज नखराली ढाणी गए हैं। मैं घर पर ही हूँ।
सही है इच्छा तो हमारी भी बहुत होती है कि हम भी बाहर जाए परन्तु संकोचवश बेटा-बहु से कह नहीं पाते। क्या करें? चलो तो अपना ध्यान रखना। बीच-बीच में फोन कर लिया कर कल्पना। इतना कह कर रोहिणी ने फोन रख दिया।

माँ मैं वीणा और परी पिक्चर देखने जाने वाले हैं और खाना भी बाहर ही खाकर आएँगे। आप खाना खा लेना। रोहित ने कहा।
दादी आप भी चलो ना! प्लीज दादी! परी ने कहा।
मेरे तो पैर दुःख रहे हैं मैं नहीं आती। रोहिणी ने जवाब दिया।
बेटा, दादी मॉल में जाकर क्या करेंगी? ना तो उन्हें एस्केलेटर चढ़ना आता है और ना ही वहाँ कोई मंदिर है  कहकर वीणा हँस दी। उन्हें तो सिर्फ़ मंदिर जानें में ही दिलचस्पी है। रोहिणी सिर्फ़ मुस्कुरा दी। पर परी कहाँ सुनने वाली थी। उसने तो ज़िद पकड़ ली। उसने कहा कि यदि दादी नहीं जाएँगी तो मैं भी नहीं। परी ने रोहिणी और कल्पना की फोन कि बातें सुन ली थीं। फिर क्या था रोहिणी ने चलने के लिए हामी भरी। परि ने अपनी पसंद की साड़ी दादी की अलमारी में से निकाली। मैचिंग का पर्स भी निकाला। और दादी को साड़ी पहनाने में मदद की। जब तक मम्मी-पापा तैयार हो रहे थे तबतक परी ने दादी के साथ एक खेल खेला। उसने ज़मीन पर दो रेखाएँ खींची। दोनों के बीच एक क़दम का फ़ासला रखा। उसने दादी को उन रेखाओं पर अपने पीछे खड़ा होने को कहा। एक पैर को लाइन पर रखा और दूसरे को हवा में रखने को कहा। रोहिणी ने पूछा ये कौन सा खेल है परी? हमने तो कभी नहीं खेला? परी हँसी और बोली दादी इसे चिड़िया बनना कहते हैं। रोहित और वीणा के तैयार होने तक उन दोनों ने चिड़िया वाला खेल चार से पाँच बार खेल लिया। रोहित ने अपनी कार निकाली। सब बैठे और मॉल की तरफ़ बढ़ गए। रोहिणी का पर्स परी ने लटका रखा था। मॉल में उतरते ही रोहिणी को एस्केलेटर के पास ले जाकर कहा। दादी चिड़िया वाला खेल। रोहिणी आराम से एस्केलेटर पर चढ़ गई। उसे देख बेटा और बहु को बहुत आश्चर्य हुआ। वहाँ से वे सिनेमा देखने गए। अंदर काफ़ी ठंडा था। परी ने रोहिणी की पर्स से शॉल निकाली और ओढ़ा दी। पिक्चर देख कर वे रेस्तरा गए। परी ने रोहिणी के हाथ में मेंन्यु कार्ड देकर कहा दादी आज का आर्डर आप दोगे। अरे तेरी मम्मी-पापा को पूछ जो वो मँगवाएँगे मैं वहीं खा लूँगी रोहिणी ने कहा। पर परी कहाँ सुनने वाली थीं। खाने के बाद परी ने कोल्ड कॉफ़ी विथ आइसक्रीम भी मँगवाया क्यूँकि उसे मालूम था कि रोहिणी को वो बहुत पसंद था। घर आने से पहले परी रोहिणी को वाशरूम भी ले गई। ये सब देख रोहित बोला यार मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा हैं कि मेरी माँ ये सब कुछ कर सकती है। तब परी बोली पापा जब हम छोटे बच्चे को बाहर ले जाते है तो हमें कई तैयारियाँ करनी होतीं है जैसे दूध की बोतल, डायपर, खिलौने आदि। दादी ने भी ये सब आपके लिए किया ही होगा? तो अब आप उनके लिए क्यूँ नहीं? उन्हें भी हमारे साथ बाहर जाना अच्छा लगता है। अब रोहित मौन होकर अपनी सोलह साल की परी की बातें सुन रहा था।

हम बूढ़ों के बारे में पहले से ही यह धारणा बना लेते हैं जो कि ठीक नहीं। ये बात सिर्फ़ सहानुभूती दिखाने की है। उम्र हो गई है परन्तु दिल तो बच्चा ही होता हैं ना?

मंजिरी 'निधि' - बड़ोदा (गुजरात)

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