प्रेम करने वाले प्रेमी, पागल होते हैं,
वो तो प्रेम रोग से ही, घायल होते हैं।
उन्हें क्या ख़बर, कुछ न आए नज़र,
वो जाएँ जिधर, कोई न करे क़दर,
हो अलग प्यार के राही, क़ायल होते हैं।
प्रेम करने वाले प्रेमी, पागल होते हैं,
वो तो प्रेम रोग से ही, घायल होते हैं।
उनके लिए प्रेम है पूजा, प्रेम से बड़ा रब ना दूजा,
दुनिया को वे न जाने, इश्क़ को ही ख़ुदा माने,
उनको कोई शिकवा नही, रॉयल होते है।
प्रेम करने वाले प्रेमी, पागल होते हैं,
वो तो प्रेम रोग से ही, घायल होते हैं।
वो न समझे रस्मे-रिवाज़, डर किसी का न लोक-लाज,
मर-मिटने के ख़ातिर, परवाह न करते शातिर,
प्रीत के डोर से बंधे स्नेही, पायल होते हैं।
प्रेम करने वाले प्रेमी, पागल होते हैं,
वो तो प्रेम रोग से ही, घायल होते हैं।
कवि संतोष कुमार - पश्चिमी चंपारण (बिहार)