स्याही - कविता - अनूप मिश्रा 'अनुभव'

सबूत देता भी क्या मैं,
अपनी बेगुनाही का।
उनका इरादा था देखना जब,
मंज़र मेरी तबाही का।।

वक़्त रक़ीबों का था आया,
और मेरा लद चुका था।
क़ीमत ख़ाक की रही,
मेरे हर इक गवाही का।।

एहतियात ज़रूरी है हर क़दम
राह-ए-इश्क़ में "अनुभव"।
नतीजा ख़ूब देखा है मैंने,
इश्क़ में लापरवाही का।।

उन्हें लम्हा न लगा मेरा,
दामन दाग़दार करने में।
मैं अर्सों से मिटा रहा हूँ,
तारीकी उस स्याही का।।

अनूप मिश्रा 'अनुभव' - उत्तम नगर (नई दिल्ली)

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