डॉ॰ देवेन्द्र शर्मा - अलवर (राजस्थान)
शरद पूर्णिमा - कविता - डॉ॰ देवेंद्र शर्मा
बुधवार, अक्तूबर 20, 2021
दुग्ध धवल सम मधुर चाँदनी,
बरस रही है जल थल में,
कौन बचा स्नात होने से,
अवनि और अंबर तल में।
धीमे-धीमे मलय समीरण,
करता कोंपल कलि से बात,
रात की रानी रजनीगंधा,
हर सिंगार देख मुस्कात।
क्षीरोदधि की उज्जवल लहरें,
मनभावन सा नृत्य करके,
अपनी अंजुरी से अमृत पी,
इठलाती हैं जी भर के।
अचल खड़ा योगी सा हिमगिरि,
चारु चंद्र को निरख रहा,
पाकर जाने कौन सा इंगित,
मन ही मन वह विहंस रहा।
उजला धवला गंगोर्मियाँ,
हिल मिल गाती हैं कल गान,
चंद्र देव की किरणों को लख,
बिखरातीं मोहक मुस्कान।
तृन तरु खग मृग कोंपल कलि सब,
हिल मिल खिल-खिल हँसते हैं,
गगन मंच चढ पूनम के संग,
चंद्र देव भी हँसते हैं।
हम सब उनसे यही चाहते,
निर्मल कोमल शीतल हों,
ऐसे पावन कर्म करें हम,
जग जो सारे उज्जवल हों।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर