शरद पूर्णिमा - कविता - डॉ॰ देवेंद्र शर्मा

दुग्ध धवल सम मधुर चाँदनी,
बरस रही है जल थल में,
कौन बचा स्नात होने से,
अवनि और अंबर तल में।

धीमे-धीमे मलय समीरण,
करता कोंपल कलि से बात,
रात की रानी रजनीगंधा,
हर सिंगार देख मुस्कात।

क्षीरोदधि की उज्जवल लहरें,
मनभावन सा नृत्य करके,
अपनी अंजुरी से अमृत पी,
इठलाती हैं जी भर के।

अचल खड़ा योगी सा हिमगिरि,
चारु चंद्र को निरख रहा,
पाकर जाने कौन सा इंगित,
मन ही मन वह विहंस रहा।

उजला धवला गंगोर्मियाँ,
हिल मिल गाती हैं कल गान,
चंद्र देव की किरणों को लख,
बिखरातीं मोहक मुस्कान।

तृन तरु खग मृग कोंपल कलि सब,
हिल मिल खिल-खिल हँसते हैं,
गगन मंच चढ पूनम के संग,
चंद्र देव भी हँसते हैं।

हम सब उनसे यही चाहते,
निर्मल कोमल शीतल हों,
ऐसे पावन कर्म करें हम,
जग जो सारे उज्जवल हों।।

डॉ॰ देवेन्द्र शर्मा - अलवर (राजस्थान)

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