डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)
छवि (भाग १६) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
बुधवार, अक्तूबर 20, 2021
(१६)
सूर्य एक है चंद्र एक है, धरती-अंबर एक है।
मानव जाति एक हैं जग में, भिन्न विचार-विवेक हैं।।
भिन्न-भिन्न हैं भाषा सबके, संस्कृतियाँ भी भिन्न हैं।
रंग-रूप भिन्न-भिन्न सबके, धर्मीय पंथ भिन्न हैं।।
सर्व मान्य और सर्व सम्मत, स्रोत धर्म के वेद हैं।
विधि-निषेध की जिज्ञासा, अक्षय और अभेद हैं।।
शाश्वत धर्म सनातन व्यापक, मूल धर्म का ज्ञान है।
चार विभाग वेद के अनुपम, विस्तारित व्याख्यान हैं।।
पहला है ऋग्वेद अनोखा, गाथा ज्ञान प्रधान है।
कर्म प्रधान यजुर्वेद यथा, दूजा ग्रंथ महान है।।
सामवेद तीसरा ग्रंथ पावन, यह उपासना कांड है।
चौथा अथर्ववेद अनूठा, विज्ञान विषय कांड है।।
ऋषि-मुनि ज्ञानीजन नाना, दिव्य तपस्या थे किए।
वेदों के अंगों के विधिवत, सतत पठन-पाठन किए।।
दर्शन और उपनिषद द्वारा, विधियों का परिचय दिए।
अनुभव मेधा के माध्यम से, वेद-तत्व के सुधि लिए।।
सिद्ध हुआ वेदों के अंदर, मूल धर्म का ज्ञान है।
मानवीय क़ानून धर्म है, इससे जन कल्यान है।।
धर्म सत्य है, सत्य धर्म है, धर्म मोक्ष का द्वार है।
धर्म स्रोत आध्यात्मिकता का, यह जीवन का सार है।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर