छवि (भाग १६) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'

(१६)
सूर्य एक है चंद्र एक है, धरती-अंबर एक है।
मानव जाति एक हैं जग में, भिन्न विचार-विवेक हैं।।
भिन्न-भिन्न हैं भाषा सबके, संस्कृतियाँ भी भिन्न हैं।
रंग-रूप भिन्न-भिन्न सबके, धर्मीय पंथ भिन्न हैं।।

सर्व मान्य और सर्व सम्मत, स्रोत धर्म के वेद हैं। 
विधि-निषेध की जिज्ञासा, अक्षय और अभेद हैं।।
शाश्वत धर्म सनातन व्यापक, मूल धर्म का ज्ञान है।
चार विभाग वेद के अनुपम, विस्तारित व्याख्यान हैं।।

पहला है ऋग्वेद अनोखा, गाथा ज्ञान प्रधान है।
कर्म प्रधान यजुर्वेद यथा, दूजा ग्रंथ महान है।।
सामवेद तीसरा ग्रंथ पावन, यह उपासना कांड है।
चौथा अथर्ववेद अनूठा, विज्ञान विषय कांड है।।

ऋषि-मुनि ज्ञानीजन नाना, दिव्य तपस्या थे किए।
वेदों के अंगों के विधिवत, सतत पठन-पाठन किए।।
दर्शन और उपनिषद द्वारा, विधियों का परिचय दिए।
अनुभव मेधा के माध्यम से, वेद-तत्व के सुधि लिए।।

सिद्ध हुआ वेदों के अंदर, मूल धर्म का ज्ञान है।
मानवीय क़ानून धर्म है, इससे जन कल्यान है।।
धर्म सत्य है, सत्य धर्म है, धर्म मोक्ष का द्वार है।
धर्म स्रोत आध्यात्मिकता का, यह जीवन का सार है।।

डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)

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