सुमन सुरभित फिर से होंगे - कविता - कमला वेदी

सुमन सुरभित फिर से होंगे,
बहारें फिर से आएँगी।
मलयानिल फिर बहेगी,
चमन फिर से हरा होगा।

चिराग़ जलाए रखना,
हौसला ना टूटे मन का।।

नदियाँ फिर से गाएँगी,
मोर फिर से नाचेंगे।
पुष्प खिलेंगे ख़ुशियों के,
फिर से चमन हरा होगा।

चिराग़ जलाए रखना,
हौसला ना टूटे मन का।।

ये माना वादियों में,
आज है ज़हर घुला।
फिर से प्रकृति मुस्कुराएगी,
धुला होगा हर पत्ता पत्ता।

चिराग़ जलाए रखना,
हौसला ना टूटे मन का।।

आशाओं के दीप बुझे ना,
हौसला कभी डगमगाए ना।
अविरल बढते जाओ आगे,
पथ मिले फूल, चाहे काँटों का।

चिराग़ जलाए रखना,
हौसला ना टूटे मन का।

ये माना लोगों ने प्रियजन खोए,
किसी ने खोया मीत मन का।
आना जाना रीत यहाँ की,
फ़लसफ़ा यही है जीवन का।

चिराग़ जलाए रखना,
हौसला ना टूटे मन का।।

टूटकर जुड़ना जुड़कर टूटना,
धूसरित होकर पुनः खिलना।
खिल-खिल कर फिर मिटना,
विधान यहीं यहाँ ईश्वर का।

चिराग़ जलाए रखना,
हौसला ना टूटे मन का।।

विचलित हृदय की लहरें,
छटपटाती भी रहेंगी।
नैय्या मन की साथ ले चलो,
पतवार विश्वास का।

चिराग़ जलाए रखना,
हौसला ना टूटे मन का।।

कमला वेदी - खेतीखान, चम्पावत (उत्तराखंड)

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