संदेश
सिमटता गाँव - लेख - अंकुर सिंह
जीवन के तीस बसंतों को पार कर चुका हूँ, जब कभी एकांत में बैठ कर बीते हुए वर्षों का अवलोकन करता हूँ तो लगता हैं कि समय ने दीवार पर टंगे …
शजर-ए-ग़ज़ल से लाया हूँ एक शे'र फ़रियाद कर - ग़ज़ल - कर्मवीर सिरोवा
अरकान : मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन तक़ती : 2212 2212 2212 2212 शजर-ए-ग़ज़ल से लाया हूँ एक शे'र फ़रियाद कर, क़ी…
उल्लास - कविता - अर्चना कोहली
उल्लास की तरंग से मन होता प्रफुल्लित, त्यौहारों की रुत से हमारा अंतर्मन है हर्षित। अद्वितीय होते हैं सतरंगी ये सभी ही त्योहार, उमंग-उल…
जितनी बार पढ़ा है तुमको - गीत - अभिनव मिश्र 'अदम्य'
एक प्रणय के संबोधन में हमने कितने नाम दिए। जितनी बार पढ़ा है तुमको उतने ही अनुवाद किए। डूबा रहता हूँ यादों में दृग से निर्झर नीर बहे। क़…
वो प्यारा बचपन - कविता - निकिता मिश्रा
वो प्यारा बचपन पीछे जा रहा है, यादो में तेरी खोया जा रहा है। वो ज़िद कर के कुछ भी माँग लेना, वो रूठ कर किसी से कुछ भी कह देना, ऐसा बचपन…
जिस्म को चादर बनाया ही नहीं - ग़ज़ल - प्रशान्त 'अरहत'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 212 जिस्म को चादर बनाया ही नहीं, रात भर दीपक बुझाया ही नहीं। ज़िंदगी में जो सिखाया …
ज़िम्मेदारी - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र
समय भले ही बीत जाए, हमारी ज़िम्मेदारियाँ नहीं बदलतीं। बस उन्हें समझना होता है। हर सुबह हंगामा होता था। तीन वर्ष की शुचि को स्कूल भेजना …
छोड़ के संबंध पकड़े शब्द हैं - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 212 छोड़ के संबंध पकड़े शब्द हैं, आज भी ज़ेहन में चिपके शब्द हैं। सोच कर थोड़ा संभल…
कलम - कविता - डॉ॰ मीनू पूनिया
रंग रूप और भिन्न आकार, लिखने का मैं करती काम। छोटी बड़ी और रंग बिरंगी, मीनू मेरा कलम है नाम। प्राचीन ग्रंथों की बनावट में, मैंने ही तो…
फूल मुस्कुराते हैं - कविता - डॉ॰ कुमार विनोद
मुस्कुराने के लिए ज़रूरी नहीं पूरी तरह विज्ञापन में उतर जाना इन्सान के लिए तनाव रहित मस्तिष्क और पेट में अनाज का तिनका होठों की परिधि म…
जीव और प्राणी - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हर जीव, हर प्राणी का जीवन आधार है जल, जंगल, ज़मीन, मानव ही प्राणी कहलाते बाक़ी सब हैं जीव। कहते हैं चौरासी लाख योनियों के बाद फिर मानव त…
वह चिट्ठी-पत्री वाला प्यार - गीत - रमाकांत सोनी
याद बहुत आता है वह ज़माना वह संसार, पलकों की बेचैनी वह चिट्ठी-पत्री वाला प्यार। दो आखर पढ़ने को जाते महीनों गुज़र, चिट्ठी मिलती ऐसे जैसे…
मुक्ति संघर्ष - कविता - आशीष कुमार
पिंजड़े में क़ैद पंछी, करुण चीत्कार कर रहा। ऊपर गगन विशाल है, वह बंद पिंजड़े में रह रहा। टीस है उसके दिल में, तिल-तिल कर है मर रहा। निर…
विश्वात्मा हो कहाँ तुम? - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
मैं तो कुछ कहता नहीं, फिर भी मेरी आँखें हैं कहती। जो कभी मैं देखता नहीं, वे सारी राज़ हैं ये खोलती। और कि विश्वास मेरा कहता है चीत्कार …
काश - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
काश! काश! तुम दूर न होते। हम भी ज़्यादा मजबूर न होते। गर तुम्हारा इश्क़ नहीं होता, तो हम इतने मशहूर न होते। तुम्हारे चेहरे की रंगत से, ह…
छवि (भाग १८) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१८) पंथ पारसी कहे जगत से, अहुरमजदा अनंत हैं। आशा का क़ानून इन्हीं से, सत्य-धर्म सिद्धांत है।। चिन्ह अहुरमजदा का पावक, सर्वोच्च शक्तिमा…
हाउ मैन इज़ सोशल एनिमल - कविता - पंकज कुमार 'बसंत'
मनुज-स्वान-गर्दभ-उलूक की निर्धारित थी पहले सम वय, सोच समझ कर प्रभु ने की थी, सबकी चालीस वर्ष वय, तय। सभी मगन थे, कभी लगन में, जीवन में…
आ सूरज हम साथ में खेलें - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सदाचार कौलिक माणिक बन, जीवन में सूरज बन चमकें। सदाचार अरुणाभ चरित बन, नभ प्रभात सूरज बन दमकें। नव प्रभात सतरंग मुदित मन आ सूरज हम साथ …
ये वक़्त जो खिसक रहा हैं चाँद की उड़ान में - ग़ज़ल - कर्मवीर सिरोवा
अरकान : मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन तक़ती : 1212 1212 1212 1212 ये वक़्त जो खिसक रहा हैं चाँद की उड़ान में, उत्सुकता की चादर फ…
हांँ भारत की नारी है वो - कविता - राघवेंद्र सिंह
कहीं चांँदनी सी है चंचल, कहीं दामिनी सा उद्घोष। कहीं करुण सी है तरुणाई, कहीं ज्वाल सा दिखा रोष। फूल नहीं चिंगारी है वो, हांँ भारत की न…
दिनमान - कविता - सीमा वर्णिका
प्राची से रवि का हो रहा आगमन, ला रहा वह संग भोर भरा दामन। शीतल सुवासित बयार बहने लगी, मनमोहक पुष्पों से निखरा चमन। धूप की चादर तन गई च…
दो कजरारी आँखों में - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा तक़ती: 22 22 22 2 दो कजरारी आँखों में, इन उजियारी आँखों में। सारी दुनिया दिखती है, हमें तुम्हारी आँखों म…
सीखो - कविता - गणेश भारद्वाज
हालात बदलते रहते हैं, हिम्मत करके लड़ना सीखो। समय बड़ा बलवान रहा है, साथ समय के चलना सीखो। झूठ कभी दौड़ नहीं सकता, सच के पथ पे चलना सी…
छवि (भाग १७) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१७) धर्म निभाया रामचंद्र ने, धारण कर के सत्य को। सत्य-शक्ति से मात दिलाया, दस ग्रीव असत्य को।। कर्तव्य-त्याग पालन कर के, रामराज्य काय…