मेरी संगिनी - कविता - सुनील माहेश्वरी

तुम्हीं मेरी प्रेरणा,
तुम ही मेरा विश्वास हो,
तुम मेरी संगिनी।
मेरे खोए आत्मविश्वास को
हमेशा जाग्रत करती हो,
तुम मेरी संगिनी।
चाहे परिस्थिति कैसी आए,
मेरे हर निर्णयों में अटल,
स्वीकृति का वरदान हो,
तुम मेरी संगिनी।
जब हताश रहने लगूँ,
व्याकुल हो जाए स्वप्न मेरे,
तब उर लगा के,
हौसला बढ़ाती हो,
तुम मेरी संगिनी।
ओझल ख़्वाबों को भी,
ज़िन्दा करके,
नए भविष्य निर्माण 
को संजोती हो,
तुम मेरी संगिनी।
मेरी हमदम मेरी कल्पना पर,
तुम यथार्थ हो जीवनसंगिनी 
पाकर प्यार तुम्हारा 
मैं धन्य हूँ 
ओ मेरी संगिनी।

सुनील माहेश्वरी - दिल्ली

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