बेटी की बिदाई - कविता - बृज उमराव

आशीर्वचन तुमको प्रेषित,
तुम आजीवन ख़ुशहाल रहो। 
कष्टों का नामोंनिशाँ न हो,
दुःख का कोई आघात न हो।। 

नाज़ों से हर पल पली बढ़ी,
खरोंच न तुमको आई है। 
सूना करके घर आज चली,
इक वीरानी सी छाई है।। 

माँ की सिसकी न रुक पाती,
भाई भाभी बहुत उदास। 
दूर हमारे से होकर भी,
आज हमारे कितने पास।। 

कक्ष तुम्हारा दिखता है,
तो ऐसा लगता तुम आई। 
सन्नाटे को चीर एक,
प्यारी सी मधुरध्वनि छाई।। 

पिता कहे दिल का टुकड़ा,
हो गया आज हमसे दूर। 
आँगन की यह धवल रश्मि,
होगी नूतन घर का नूर।। 

बंधी एक रिश्तों की डोरी,
खिला एक नव कंचन फूल। 
प्रेम पल्लवित हो नवजीवन,
नव आंगन में हो मशगूल।। 

नाज़ों से तू पली बढ़ी,
जीवन का हर सोपान चढ़ी। 
रीति सिखाती थी हमको,
आज अकेले छोड़ चली।। 

शब्द नहीं कुछ फूट रहे,
नैनों से अश्रुधार बहती। 
बेसुध माँ बेहाल बहन,
स्थिति सब की ख़ुद कहती।। 

जाओ हे बेटी जहाँ रहो,
ख़ुशियों का संसार मिले। 
अन्तर्मन हो आल्हादित,
असीमित तुमको प्यार मिले।। 

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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