छवि (भाग १७) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'

(१७)
धर्म निभाया रामचंद्र ने, धारण कर के सत्य को।
सत्य-शक्ति से मात दिलाया, दस ग्रीव असत्य को।।
कर्तव्य-त्याग पालन कर के, रामराज्य कायम किया।
जन कल्याण हेतु अपना, सुख-समृद्धि त्याग दिया।।

मर्यादापुरुषोत्तम राघव, जग के धर्म-प्रतीक हैं।
राम सत्य है, राम धर्म है, राम-नाम पुनीत है।।
राम यशस्वी राम तेजस्वी, राम ज्ञान संपन्न हैं।
राम बिना यह दुनिया सारी, अनाथ और विपन्न है।।

राम मुझमें राम तुझमें, घट-घट में श्री राम हैं।
राम धीरता सहनशीलता, विनम्रता का नाम है।।
राम प्रेम के महासिंधु हैं, राम स्नेहमय भाव है।
जन-जीवन पर राम-कथा का, पड़ता बड़ा प्रभाव है।।

राम सरिष कर्तव्य निभाओ, राम सरिष धीरज धरो।
राम बनो उजियार करो जग, राम सरिष हर डग भरो।।
जगत राममय बन जाएगा, शुभारंभ निज से करो।
छवि अनुपम बने जगत की, हर संभव कोशिश करो।।

डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)

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