संदेश
श्री गणेश चतुर्थी - दोहा छंद - सरिता श्रीवास्तव 'श्री'
हाथ जोड़ वंदन करूँ, गौरी नन्दन गणेश। दुनिया भव बाधा हरो, हर लो सकल क्लेश।। वक्र तुण्ड महाकाय प्रभू, सर्व देव आदि देव। शुभ कार्य पूजन …
प्रथम पूज्य आराध्य गजानंद - गीत - रमाकांत सोनी
बुद्धि विधाता विघ्नहर्ता, मंगल कारी आनंद करो। गजानंद गौरी सुत प्यारे, प्रभु आय भंडार भरो। प्रथम पूज्य आराध्य गजानंद, हो मूषक असवार। …
माँ - कविता - अभिजीत कुमार सिंह
इस ज़िंदगी की दानी माँ इस ममता की कहानी माँ, लिपटाए मुझे अपनी गोद में लोरी सुनाए मुँह-ज़बानी माँ। जब रात के अँधियारे में माँ ने पलक झ…
तन्हा - नज़्म - अभिषेक द्विवेदी 'नीरज'
चुप-चुप सा रहता हूँ, तन्हाई में जीता हूँ, ज़िंदगी बसर हो रही है यूँ ही तन्हा, फिर भी रात सपनों में खोया रहता हूँ। ज़माना रूप बदलता रहा म…
श्री गणेश वन्दना - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
पद सरोज श्रद्धा नमन, करूँ गजानन आज। उमातनय परमेश कुरु, स्वस्ति लोक गणराज।। गणनायक पूजन करूँ, हे अच्युत विघ्नेश। गजमुख वरदायक नमन, ल…
कभी-कभी दमख़म दिखाना चाहिए - ग़ज़ल - महेश 'अनजाना'
अरकान: मुफ़ाइलुन फ़ेलुन फ़ऊलुन फ़ाइलुन तक़ती: 1212 22 122 212 कभी-कभी दमख़म दिखाना चाहिए, जोर बाजुओं का आज़माना चाहिए। कब तक सहेंगे ज़ुल्म सित…
द्रोपदी का चीर हरण - कविता - सीमा वर्णिका
द्युतक्रीड़ा में हार गए युधिष्ठिर, राज्य धन वैभव भाई बंधुवर। अंत में पंचाली दाँव लगाई, शकुनि चाल से मात खाए कुँवर। द्रोपदी को समाचार स…
आलस घातक घोर - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
जागो समय न खोइए, आलस घातक घोर। छोटे दिन की ज़िंदगी, कब लाओगे भोर।। कब लाओगे भोर, करो कुछ कर्म नगीना। छोड़ो तम अज्ञान, बढ़ो पथ जीवन जीना…
मौन के लाभ हानि - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
मौन की प्रवृत्ति आदि काल से चली आ रही है। प्रश्न मौन होने का नहीं समय, काल, परिस्थितियों के अनुरूप मौन के प्रतिउत्तर का है। सबको पता ह…
माँ - कविता - भुवनेश नौडियाल
माँ के प्रेम से सिंचित होकर, इस जगत को जान पाया। अमृत दूध धारा से, तूने मुझको है पाला। प्रणिपात है देव को, उसने रूप अपना दिया। इस जगत …
अधूरा प्रेम - गीत - बजरंगी लाल
प्रेम होता अधूरा सदा से रहा, पूर्ण करने में हम तो लगे रह गए। तुमको पाने के रस्ते थे टेढ़े मगर, सीधा करने में हम तो लगे रह गए। जाति मज़…
कश्मीर - कविता - दीपक राही
कश्मीर तुम्हें यूँ ही नहीं कहते, कुदरत का नायाब यूँ नहीं कहते। तुम ही तो हर मौसम का रंग दिखलाते, पल-पल बदलते अफ़सानों को महकाते, बाग़-बग़…
हरित वसुंधरा - कविता - अनिल मिश्र प्रहरी
देख अम्बर मेघ फूलों के अधर लाली, प्रेमरत मधुकर, मगन मकरंद, तरु-डाली। वल्लरी झूमे, पवन मुकुलित कली चूमे, कर रही अरुणिम प्रभा रुत मत्त, …
ग्लोबल वार्मिंग - कविता - डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी
धरती गरमा रही है तो क्या हुआ? कुछ गर्माहट आप तक पहुँची क्या? धरती गरमाने का मतलब? "ग्लोबल वार्मिंग" अंग्रेजी में? हाँ सुना त…
या ख़ुदा मोहसिन मेरे - सूफ़ी गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
या ख़ुदा मोहसिन मेरे मेहरबाँ मेरे करीम। मौला मेरे मालिक मेरे जानें जहाँ मेरे रहीम। 2 आज तुझको पा गया हूँ, इश्क़ में तेरे सना हूँ। ये मेर…
एक नई शुरुआत - कविता - आर्तिका श्रीवास्तव
एक नई शुरुआत करी है मैंने अपने जीवन की, जिसमें चाहत बुन रहा हूँ मैं अपने हर रिश्ते की। बरसों से जो छूटा था रोज़ी-रोटी कमाने में, हर रिश…
खोज - कविता - विनय विश्वा
शब्दों को ढूँढ़ता है की मंज़िल को ढूँढ़ता है, हर घड़ी मेरा दिल अभिव्यक्ति को ढूँढ़ता है। यादों को ढूँढ़ता है की ख़्वाबों को ढूँढ़ता है, हर घड़ी…
चिड़िया रानी - कविता - प्रवीण
चिड़िया रानी बड़ी सयानी, मोह माया सब इसने जानी। पंख फैलाए फुर हो जाती, यह कभी ना हाथ में आती। सुबह-सुबह यह जब है आती, सब के दिल को बहल…
पिता - कविता - काजल चौधरी
पिता के बाद, याद आता है, बहुत कुछ- उनका त्याग, उनकी तपस्या। हमारी ख़ातिर हमारी परवरिश हेतु, हमीं से दूर रह हर पल चिंताकुल रहना, हमारी ज…
संस्कार निभाना - गीतिका - विशाल भारद्वाज 'वैधविक'
जीवन में आचार निभाना। तुम अपना संसार निभाना। पा लेना कुछ पाना हो तो, तुम अपना आभार निभाना। रिश्तों में मिलते है धोखे, तुम अपना बस प्या…
श्रम की अद्भुत मिसाल किसान - कविता - अर्चना कोहली
श्रम की अद्भुत मिसाल किसान कहलाते हैं, निर्धन-धनी सभी की क्षुधा शांत करते है। जी-तोड़ मेहनत कर ख़ुशहाली धरा पर लाते, फिर भी अधिकतर ही अ…
खिड़की - कविता - शुभोदीप चट्टोपाधाय
मेरे घर में जो खिड़की है वो, मेरे इस शरीर के समान है और खिड़की के इस तरफ़ फँसा मैं, मेरे अंदर रहने वाले जीवात्मा के समान। और उस खिड़की मे…
बस तुझको ही पाया है - गीत - प्रवीन 'पथिक'
खो दिया सब कुछ मैंने यूँ बस, तुझको ही पाया है। आँखों में था प्रणय-प्यास, पलकों में हया की लाली थी। होठों पे कुछ मीठे सरगम, जैसे गाती क…
नया सवेरा फिर आया है - कविता - राम प्रसाद आर्य 'रमेश'
उठो साथियों! निंद्रा त्यागो, नया सवेरा फिर आया है। नव उमंग, तरंग, रंग नव, मग नव, नव चेतन लाया है।। मुर्गे कुकडू़ कु बोले हैं, कलिय…
गुरु ज्ञान दीप रवि सम समझो - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
गुरु बिन ज्ञान न हो जीवन में, अरुणाभ दिवाकर गुरु समझो। घनघोर निशा अज्ञान तिमिर, गुरु चन्द्रप्रभा जीवन समझो। छल छद्म द्वेष ईर्ष्या लालच…