अरकान: मुफ़ाइलुन फ़ेलुन फ़ऊलुन फ़ाइलुन
तक़ती: 1212 22 122 212
कभी-कभी दमख़म दिखाना चाहिए,
जोर बाजुओं का आज़माना चाहिए।
कब तक सहेंगे ज़ुल्म सितमगर के,
ज़ुल्म से बग़ावत हो जाना चाहिए।
कहीं पर फांका-कसी, जश्न है कहीं,
हर बुझे चुल्हों को जलाना चाहिए।
एक देश, एक ही अधिकार तो मिले,
एक ज़मीं पर आशियाना चाहिए।
सबको मिले यहाँ जो हक़ जिनका है,
आज़ादी सबके हिस्से आना चाहिए।
ये देश ही अपना वतन भी है यारो,
वतन की आबरू को बचाना चाहिए।
दुश्मन कोई दोस्त बनकर दगा ना दे,
न कोई दग़ाबाज़ 'अनजाना' चाहिए।
महेश 'अनजाना' - जमालपुर (बिहार)