आलस घातक घोर - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

जागो समय न खोइए, आलस घातक घोर।
छोटे दिन की ज़िंदगी, कब लाओगे भोर।।
कब लाओगे भोर, करो कुछ कर्म नगीना।
छोड़ो तम अज्ञान, बढ़ो पथ जीवन जीना।।
श्रम ही जीवन डोर, 'अंशुमाली' मत भागो।
त्यागो चिर अभिमान, जिओ जीने दो, जागो।।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos