द्रोपदी का चीर हरण - कविता - सीमा वर्णिका

द्युतक्रीड़ा में हार गए युधिष्ठिर,
राज्य धन वैभव भाई बंधुवर।
अंत में पंचाली दाँव लगाई,
शकुनि चाल से मात खाए कुँवर।

द्रोपदी को समाचार सुनाया,
केश खींचकर दुशासन लाया।
करुण विलाप कर रही द्रोपदी, 
सभा में किसी को तरस न आया।

मन व्यथित पांडु पुत्र लाचार,
असहाय थे लेने में प्रतिकार।
धर्म नीतियाँ आड़े थीं आई,
चीत्कार से गुंजित सभागार।

हे! मेरे वासुदेव रक्षा करो,
अपनी परमभक्त का मान धरो।
कोई सहारा नहीं है बाक़ी,
मुझ अभागिन के भले प्राण वरो। 

सभा में अद्भुत चमत्कार हुआ,
अदृश्य शक्ति से साक्षात्कार हुआ।
द्रोपदी का चीर हो अंत हीन,
दुशासन का कुकृत्य बेकार हुआ।

कर न पाया द्रोपदी चीर हरण,
अपशकुनों से भरा वातावरण।
दुर्योधन का निम्न शब्द प्रहार,
धृतराष्ट्र का कम्पित हो अंतःकरण।।

सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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