संस्कार निभाना - गीतिका - विशाल भारद्वाज 'वैधविक'

जीवन में आचार निभाना।
तुम अपना संसार निभाना।

पा लेना कुछ पाना हो तो,
तुम अपना आभार निभाना।

रिश्तों में मिलते है धोखे,
तुम अपना बस प्यार निभाना।

कलयुग के कपटी ह्रदयो से,
तुम अपना व्यवहार निभाना।

चाहें करते फिरे सभी छल, 
तुम अपना संचार निभाना।

असफलताओं से अब लड़ कर, 
तुम अपना आधार निभाना।

प्रेम यदि हो जाएँ कभी तो,
तुम अपना अभिसार निभाना।

प्रेम बदले न मिले प्रेम तो,
तुम अपना भरमार निभाना।

इच्छा मत रखना तुम अपनी,
बस अपना घरबार निभाना।

दुनिया चाहें कुछ भी बोले,
तुम अपने संस्कार निभाना।

विशाल भारद्वाज 'वैधविक' - बरेली (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos