गुरु ज्ञान दीप रवि सम समझो - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

गुरु बिन ज्ञान न हो जीवन में,
अरुणाभ दिवाकर गुरु समझो।
घनघोर निशा अज्ञान तिमिर,
गुरु चन्द्रप्रभा जीवन समझो।

छल छद्म द्वेष ईर्ष्या लालच,
महा अंधकार निशा समझो!
घोर डरावन अज्ञान तिमिर,
गुरु ज्ञान दीप रवि सम समझो।

संस्कार पलित सदाचार सृजित,
गुरुता गौरव लेपित समझो।
सत्पथप्रेरक निर्माणक जन,
दिग्दर्शक हरिपद नित समझो।

निर्भेद ज्वलित बन गुरु दीपक,
बन दीपशिखा जीवन समझो।
नित ज्ञान तैल बन ज्योति प्रखर,
गुरु वशिष्ठ संदीपनी समझो।

अगस्त्य अत्रि जमदग्नि कौत्स,
भरद्वाज पराशर भृगु समझो।
कण्व शुक्र गौतम व्यास शृंग्व,
विश्वामित्र कपिल शुक समझो।

मतिमान शास्त्र नैपुण्य सकल,
सद्विवेक पथिक मानक समझो।
जो धीर वीर साहस गुणज्ञ,
परमार्थ निकेतन गुरु समझो।

हर अंधकार मानव जीवन,
नवप्रभात प्रगति दीपक समझो।
"तमसो मा ज्योतिर्गमय" नायक,
नवांकुर कुसुमाकर समझो।

गुरु ज्ञान दीप बिन कहाँ जीवन,
कहाँ चरित्र सुपथ मानव समझो।
कहाँ मान दान सुकीर्ति जगत,
बस अज्ञान अंध दानव समझो।

सद्गुरुत्व करोड़ों जले दीप,
सद्नीति न्याय चालक समझो।
परमार्थ प्रीति पुरुषार्थ सबल,
गुरुदीप ज्वलित साधक समझो।

अखिल सृष्टि निर्माणक मानव,
करुणाकर ममता गुरु समझो।
क्षमा शील प्रीति गुण रत्नाकर,
संयम गंभीर निरत समझो।

समभाव शान्ति आनंद मुखर,
गुरुदीप्त दीप शाश्वत समझो।
माधव मुकुन्द गीतोपदेश,
चाणक्य दीप गुरुता समझो।

नवज्योति जले गुरुज्ञान सफल,
पथ मानवता मूल्यक समझो।
सच्चरित्र प्रगति सुपथ नैतिक,
औदार्य प्रकृति शिक्षक समझो।

निशिकांत प्रभा मधुरिम शीतल,
गुरु दीप ज्वलित तारक समझो।
असंख्य शिष्य गुरुदीप ज्वलित,
पात्र सुयश सम्मानित समझो।

डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली

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