बढ़ते क़दम - कविता - सुनील माहेश्वरी

रास्तों को जोड़, काँटों को तोड़,
आसमान को हम छूने चले हैं।
बदलने चले हैं ज़माने को,
हम आगे बढ़ने चले हैं।
दोस्तों इरादे नेक हों तो,
मंज़िलें क़दमों तक आती हैं।
चाहे कोई भी मुश्किलें आएँ,
ख़ामोशी से रास्ता छोड़ देती है।
ज़िंदगी हर मोड़ पर मारेगी डंडे,
पर तुम गाड़ देना सफलता के झंडे।

सुनील माहेश्वरी - दिल्ली

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