सरल होना - गीत - संजय राजभर "समित"

प्रेम दया सहयोग समर्पण,
ज़रूरी है तरल होना। 
सब कुछ कर लो सरल, स्वयं को,
सबसे कठिन सरल होना।

कुंठा औ' द्वेष की भावना,
अंदर-अंदर खाती है। 
सब है अपने मिलनसार ही,
सबसे मेल कराती है।

मानव पूर्ण होता नही पर,
कोशिश रहे सकल होना।
सब कुछ कर लो सरल, स्वयं को,
सबसे कठिन सरल होना।

सादा रहन उच्च विचार में,
शांति और ख़ुशहाली है।
चकाचौंध की इस दुनिया में,
दुःख औ' तंगहाली है।

एक नासूर है जीवन का,
हिय कुँज में गरल होना। 
सब कुछ कर लो सरल, स्वयं को,
सबसे कठिन सरल होना।

प्रकृति दोहन बड़ा है कारक,
मानव विकृत मानसिकता।
भाँति-भाँति के रोग लोभ,
बढ़े भय अड़ियल ढीढता। 

जब तक समझ नही जीवन की,
तब तक रहे पहल होना। 
सब कुछ कर लो सरल, स्वयं को,
सबसे कठिन सरल होना।

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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