जाड़े की धूप - कविता - निशांत सक्सेना "आहान"

शिशु की मासूम मुस्कान सी
जाड़े की धूप,
अंबिका की अनकहे स्नेह सा
जाड़े की धूप,
तनु पर किसी अपने की गर्माहट सी
जाड़े की धूप,
एक अनकहा सुकून एहसास
जाड़े की धूप,
नई स्फूर्ति का संचार
जाड़े की धूप,
सहधर्मिणी सी जो भाए
जाड़े की धूप,
ठिठुरते शरीर की कार्य संचारिणी
जाड़े की धूप,
सहस्त्र एहसासों का समुचय
जाड़े की धूप।

निशांत सक्सेना "आहान" - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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