जीवन के जो पल मिले - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

जीत हार सुख आपदा, जीवन की है रीत।
जीवन के जो पल मिले, रचो उसे नवनीत।।

काल चक्र विधिलेख से, परिचालित संसार।
उत्तम पथ यायावरित, चलो धर्म आचार।।

बोधन नित परभाव को, श्रवण करो परतथ्य।
तौल विवेकी तुला पर, उद्भावन निज कथ्य।।

रहो मौन धीरज रखो, बनो नहीं ज़ज्बात।
रखो प्रीति निज नीति पथ, नित निर्मल अभिजात।।

लघु शंका भी हो मनसि, वैमनस्य का मूल।
बिना परख कर दुश्मनी, लक्ष्य सदा निज भूल।।

काल सदा गतिमान है, है प्रमाण जग काम।
उठा लाभ जो वक़्त का, लघु जीवन अभिराम।।

कालचक्र सुख दुख समा, गति अवगति मँझधार।
सेवन नित हर्षित मना, समझ नाव पतवार।।

पीड़ बिना यह ज़िंदगी, नीरस बिन संघर्ष।
बिन साहस धीरज पथी, उद्यम बिन उत्कर्ष।।

चल प्रबुद्ध बन वक़्त पर, शोक कोप बिन चाह।
मिले मार्ग  दुर्गम सुगम, बिना हुए गुमराह।।

प्रबल सत्य सुख आपदा, यायावर स्वीकार।
चले समझ निष्फल सफल, प्रमुदित जीवन सार।।

दुख सरिता संघर्ष का, कवि "निकुंज" पर्याय।
सही विषम अवसीदना, सत्य रथी बिन आय।।

चढ़ी ऊँचाई आसमाँ, सहा विघ्न उपहास।
गिरा व्योम जीवन विफल, लक्ष्य पतन अहसास।।

हार जीत सहधर्मिणी, दुख सुख जीवन चक्र।
बढ़ो सजग सच कर्मपथ, कर मानवता फ़क़्र।।

खिले चमन मुख दीनता, अमन राष्ट्र सुख चैन।
बने सबल चल न्यायपथ, नेह प्रकृति हो नैन।। 

रोग शोक निर्मूलता, नैतिकता हो धर्म।
सुख-दुख में नवमीत बन, मानवता सत्कर्म।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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