नारियाँ - कविता - ममता रानी सिन्हा

हम नारियाँ सदा बहुत मज़बूत होती हैं,
जग के लिए सदा प्रथमा बुद्ध होती हैं,
सृष्टि संचालन निमित्त मूलाभूत होती हैं,
हाँ! सचमुच हम बहुत मज़बूत होती हैं।

हम स्वयं ही सर्वस्व अर्पण करती हैं,
हम तृण को भी वृक्ष विशाल करती हैं,
धैर्य, शील, क्षमा, दान की प्रबुद्ध होती हैं,
हाँ! सचमुच हम बहुत मज़बूत होती हैं।

हम जब स्वंय का समर्पण करती हैं,
एक प्यारा आदर्श परिवार कहती हैं,
वंशबेल की स्थायित्व देवदूत होती हैं,
हाँ! सचमुच हम बहुत मज़बूत होती हैं।

हम जब सभ्य संस्कार साज बजती हैं,
तो एक न्यारा आदर्श समाज कहती हैं,
संस्कृति, संरक्षण को स्वआहुत होती हैं,
हाँ! सचमुच हम बहुत मज़बूत होती हैं।

स्वयं हीं झुककर दबी अबला लगती हैं,
समय आने पर दुर्गा बनकर भी जगती हैं,
कभी जगजननी, कभी कालदूत होती हैं,
हाँ! सचमुच हम बहुत मज़बूत होती हैं।

मौन हो रिश्ते बचाती निंदा, व्यंग्य सहती हैं,
मगर जननी बनकर सब ज़िंदा रखती हैं,
उपेक्षित हो भी सबकी स्नेहाधुत्त होती हैं,
हाँ! सचमुच हम बहुत मज़बूत होती हैं।

सृष्टि संजीवित रखना है तो संज्ञान करो,
बेटियों का संरक्षण नारी का सम्मान करो,
वर्ना अपमानित प्रकृति भी आयुध होती हैं,
हाँ! सचमुच हम बहुत मज़बूत होती हैं।

ममता रानी सिन्हा - रामगढ़ (झारखंड)

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