दिन वही है - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"

मग्न कोई कहीं जन्म दिन के जश्न में है, 
कहीं कोइ रंज निमग्न, मरन दिन के।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।। 

काँधा दे रहा कहीं कोई डोली बहिन की,  
दे रहा काँधा कोई अर्थी भ्रात की।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ़ है।। 

कहीं कड़वाचौथ-वृत पति का इंतज़ार, 
कहीं पति-शव लिपट रोदन, चीत्कार। 
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न, 
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।। 

मौज-मस्ती में कोई हँस रहा होंठ भर,
रो रहा कहीं कोई, नयन अश्रु भर-भर।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न, 
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।। 

कहीं काट रहा है कोई किसी को, 
कहीं कोई कट रहा है किसी से। 
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न, 
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।। 

कहीं जश्न जीत-जंग अट्टहास है, 
कहीं मात-मातम, दिल है उदास। 
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,  
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।। 

कहीं लू-तपिश, कहीं लहर-शीत ठिठुरन, 
कहीं वर्षा-बहाना, कहीं तूफाँ तवाई।। 
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न, 
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ़ है।। 

सोया सोने के बिछौने में कोई ठाट में, 
माँगता फिर रहा कहीं कोई हाट में। 
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न, 
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख बाढ़ है।। 

हरियाली बसन्त कहीं, कहीं वीरान पतझड़,
कहीं चमत्कार पूनम, कहीं अमावस अंधकार।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख बाढ़ है।। 

कहीं कोई रंग-रस होली-ठिठोली,
कहीं जंग, परस्पर चल रही गोली-गोली। 
दिन वही, देन है बस भिन्न-भिन्न, 
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ़ है।। 

कहीं लाज द्रौपदी की दुशासन से बचाई, 
कहीं निर्दोष सीता है वन में छुडा़ई।  
प्रभु! कैसी ये लीला है तूने रचाई,
जो अब तक समझ में मेरे तो न आई।।

राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)

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