बहुत नादान फिरते इस शहर में - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण

अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 1222 1222 122

बहुत नादान फिरते इस शहर में,
यहाँ वो मौक़ा खोजे हर क़हर में।

रहें घर पर, न कोई हादसा हो,
कोई मासूम ना खोए लहर में।

तबाही कर रहा है ख़ूब क़ातिल, 
छुपा है वो हवा के इस ज़हर में।

नहीं है चैन अब, कोई करे क्या,
अकेले आज हैं वो हर पहर में।

निगाहों को डराती आज लाशें,
ग़ज़ल कैसे लिखूँ मैं अब बहर में।

श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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