फूलों पर मँडराते भौंरे,
बग़िया बग़िया जाते हैं।
बैठ फूल पर पराग सदा
वो लेकर उड़ जाते हैं।
नहीं मतलब फूलों से उन्हें,
पराग ही उनको पाना है।
चूस पराग कण को फिर
दूसरे फूलों पर जाना है।
ऐसी ही कुछ इंसानी फ़ितरत,
बस अपने मतलब से काम है।
जब हो जाए काम फिर कहाँ
उसे किसी से पहचान है।
प्रेम का मतलब पाना उनका
फिर आगे नही काम है।
पाकर सदा ही दूसरे तलाश में
यही फ़ितरत अंदाज़ है।
रूचिका राय - सिवान (बिहार)