डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)
छवि (भाग १) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
सोमवार, मई 31, 2021
(१)
अदृश्य चेतना की छवि तुम, दिव्य-प्रभा से हो भरी।
आवेगी और विवेकी हो, ज्ञानमयी शिवसुंदरी।।
तुझसे है स्पंदित यह जीवन, स्पंदित यह संसार है।
मन का सबसे गहरा तल तू, मन का तू विस्तार है।।
तुझसे है जड़ या जड़ से तू, प्रश्न आज तक है खड़ा।
विज्ञान लड़े आध्यात्म लड़े, प्रश्न जटिल है यह बड़ा।
खेल कौन खेल रहा है जग में, अदृश्य शक्ति है कहाँ?
कौन व्यवस्था चला रहा है, चलो मुझे लेकर वहाँ।।
सत्ता का उद्भव संचालन, किसके द्वारा हो रहा?
अभिवर्धन परिवर्तन पर भी, प्रश्न खड़ा अतिशय बड़ा।
जीव-जंतु और वनस्पतियाँ, कैसे साँसे ले रही?
इन घटकों के पीछे कोई, महाशक्ति क्या है नहीं?
प्राणी के काया में मौजूद, चलते कैसे तंत्र हैं?
सकल क्रियाएँ चलती कैसे, कोई जादू मंत्र है?
अणु से लेकर विभु तक पसरे, वैभव का कारण कहो।
नाथ! हमें छवि दिव्य-जगत की, दिखलाओ, न मौन रहो।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर