अविचल-पथ - कविता - प्रवीन "पथिक"

छोड़ विसंगति की राहें,
सुदृढ़ कर निज दुर्बल बाहें।
न तुझसे होगी कभी चूक,
तब लक्ष्य होगा तेरे सम्मुख।
जो डरकर तू गया रुक,
हो जाएगा पथ से विमुख।
कुछ भी तेरे हाथ न आएगा,
जग हँसी तेरा उड़ाएगा।
लक्ष्य का तू कर संधान,
चाहें जितना हो व्यवधान।
न रुकेगा, कर दृढ़ संकल्प,
पृथक इसके ना है विकल्प।
तब मंज़िल के होगा निकट,
पथ-पथरीला हो या विकट।
तब होगी कामना तेरी पूर्ण,
कुछ भी तो न रहेगा अपूर्ण।
जिसने कुछ पाया यही मान,
कर समस्याओं का समाधान।
निरंतर चल प्रगति-पथ पर,
पाया निज गौरव व सम्मान।

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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