पुदीना की पहचान - कविता - गोलेन्द्र पटेल

दुख की दुपहरिया में
मुर्झाया मोथा देख रहा है,
मेंड़ की ओर
मकोय पककर गिर रही है
नीचे;
(जैसे थककर गिर रहे हैं लोग तपती सड़क पर...)
और
हाँ, यही सच है कि पानी बिन
ककड़ियों की कलियाँ सूख रही हैं
कोहड़ों का फूल झर रहा है।

गाजर गा रही है ग़म के गीत
भिंड़ी भूल रही है
भंटा के भय से,
मिर्च से सीखा हुआ मंत्र
मूली सुन रही है मिट्टी का गान।

बाड़े में बोड़े की बात न पूछो
तेज़ हवा से टूटा डम्फल,
ताड़ ने छेड़ा खड़खड़ाहट-का तान।

ध्यान से देख रही है दूब
झमड़े पर झूल रही हैं अनेक सब्जियाँ;
(जैसे - कुनरू, करैला, नेनुआ, केदुआ, सतपुतिया, सेम, लौकी...)

पास में पालक-पथरी-चरी-चौराई चुप हैं,
कोमल पत्तियों पर प्यासे बैठे पतंगें कह रहे हैं
इस कोरोना काल में
पुदीने की पहचान करना कितना कठिन हो गया है।

आह! आज धनिया खोटते-खोटते
खोट लिया मैंने ख़ुद का दुख!

गोलेन्द्र पटेल - चंदौली (उत्तर प्रदेश)

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