कैसा खेल प्रकृति ने खेला,
थम सा गया दुनिया का मेला।
हर एक मन में बस अब डर है,
अब तो हवाओं में भी ज़हर है।
अब हर जन को डरते देखा,
त्राहि त्राहि बस करते देखा।
काल सा लगता तेरा शहर है,
कोरोना का अजब क़हर है।
पास न कोई अब आता है,
दुनिया से जब कोई जाता है।
अर्थी को न देते कंधा,
इंसान हो गया कितना अंधा।
शहर तेरे वीरान हुए हैं,
आबाद शमशान हुए हैं।
कोरोना से मन में भय है,
टूट रही जीवन की लय है।
माँ बेटे की लाश है ढोती,
बहन भाई के लिए है रोती।
दृश्य ये अब ना देखा जाए,
सुकून दिल कोई कैसे पाए।
सृष्टि के कर्ता अब आओ,
सृष्टि के भर्ता अब आओ।
हे प्रभु अब तो दया दिखाओ,
सृष्टि तुम्हारी तुम्हीं बचाओ।
भानु प्रताप सिंह तोमर - गुरुग्राम (हरियाणा)