ख़ुशियों का जहान बनो - ग़ज़ल - श्याम निर्मोही

अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़अल
तक़ती : 1222 1222 1222 12

किसी रोते हुए चेहरे की मुस्कान बनो।
दबे, कुचले, मज़लूमों की ज़ुबान बनो।।

क्यों करते हो हंगामा क़ौम के नाम पर,
बनना ही है तो एक अदद इंसान बनो।

कब तक खिंचोगे यूँ एक दूजे की टाँग,
जिनके पर नुच गए उनकी उड़ान बनो।

मिले सबको मुकम्मल आशियाने यहाँ,
किसी की ज़मीं किसी का आसमान बनो।

बदल डालो इन सब पुरानी रवायतों को,
अब तो इंसानियत की नई पहचान बनो।

इतना ज़हर कहाँ से लाते हो ऐ "निर्मोही",
भुलाकर रंजिशें ख़ुशियों का जहान बनो।

श्याम निर्मोही - बीकानेर (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos