शिक्षक - कविता - प्रद्युम्न अरोठिया

वो प्रज्वलित दीप-सा
मिटाने अंधकार
मीलों की गहराई में भी
आशा का प्रकाश बना है,
भूले जो अनजाने पथ पर
खींच उनको जीवन पथ पर
कल की उम्मीद के लिए
नव प्रण का वो ही
आत्मविश्वासी प्रकाश बना है।
उसका सानिध्य ही
नव जीवन का आधार बना है,
नव विश्व का वो ही तो 
सृजनहार बना है।
हर कण में उसका ही रूप 
जो देता ज्ञान
हारने वाला हार कर भी बारम्बारता खड़ा है,
एक हार जीवन की हार नहीं
उसका यही ज्ञान सफलता का प्रतिबिंब बना है।
आदर्शों की बनकर मिशाल 
हर मन में सच्चाई का 
कठिन से कठिन पथ पर
विचलित रहित ईमान बना है,
जीवन की असफलताओं से
न डरने वाला उसका ही अंश 
हर किसी के मन में 
सफलता की उम्मीद बना है।
वो किताबी ज्ञान ही नहीं
वो मानवता का द्योतक भी बना है,
मानव को मानव से जोड़ता
मानवीय प्रेम का गुरुकुल बना है।
वो चीर कर तम के साए
हर मन में प्रकाश का पुंज बना है,
उसका ज्ञान जीवन एक संघर्ष
और संघर्ष से मनुज महान बना है।

प्रद्युम्न अरोठिया - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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