मुस्कुराती रहो - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
तक़ती : 212 212 212 212

ज़िंदगी तुम सदा मुस्कुराती रहो।
साथ उम्मीद के दिन बिताती रहो।।

मात में ही छुपी जीत की राह है,
जीत जाओ कभी मात खाती रहो।

जब तलक हो जहाँ में रहो मौज से,
गर बुझे मन कभी तो मनाती रहो।

सिर्फ़ सुख के लिए मत जिओ बावरी,
दुख मिले तो उसे भी निभाती रहो।

सच बताता नहीं बाहरी आईना,
रूह को रोज़ सूरत दिखाती रहो।

ख़्वाब हो या हक़ीक़त सदा प्यार से,
दोस्ती मानकर नित बुलाती रहो।

चार अपनी कहो चार उसकी सुनो,
वक़्त के हाल सुनती सुनाती रहो।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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