संदेश
सृजन देवता श्री विश्वकर्मा - गीत - उमेश यादव
शिल्प के ज्ञाता, विश्व निर्माता, रूपकर्ता महान हैं। सृजन देवता श्री विश्वकर्मा, साक्षात भगवान हैं॥ ब्रह्मापुत्र धर्म के आत्मज, वास्त…
झाँक कर दिल में कभी मैं देखूँ जब भी आरज़ू - ग़ज़ल - कमल पुरोहित 'अपरिचित'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 2122 212 झाँक कर दिल में कभी मैं देखूँ जब भी आरज़ू, पा ही जाता हूँ हम…
हिंदी की थाती - कविता - विनय विश्वा
हिंदी हिंदुस्तान की या हिंदुत्व या भाषा! जिसमें आशाएँ बहुत हैं बशर्ते की वह ओढ़ा हुआ न हो उसका अपना स्वाभिमान हो अपनी तरह से जीने की …
मैं हिन्दी हूँ - कविता - गणेश भारद्वाज
मैं भारत के जन-जन की बोली हूँ, कितनी ही बहनों की हमजोली हूँ। जनमानस के प्राणों में बसती हूँ, तुतलाते बोलों से में हँसती हूँ। पढ़ने लिख…
हिन्दी - कविता - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
मैं हिन्दी हिंदुस्तान की, गाथा अमर सुनाती हूँ। हूँ गौरव हर ललाट का, हर प्रांत में पाई जाती हूँ। गीत, संगीत, भजन, कहानी, और साहित्य का …
हिंदी का अस्तित्व - कविता - दीपा पाण्डेय
आज़ादी का बिगुल बजा था स्वप्न सँजोई थी हिंदी, मेरा ही वर्चस्व रहेगा यही सोचती रहती थी। सोलह बरस जब बीत गए थे अंग्रेजी ही छाई थी, सम्पूर…
हिंदी से है हिंद हमारा - कविता - अनूप अंबर
माँ की ममता के जैसी, सुंदर सी हमारी हिंदी। सारी दुनियाँ कुछ भी बोले, मेरी तो महतारी हिंदी॥ ख़ुशियों की किलकारी हिंदी, पुष्पों की फ…
हिंदी प्राण-शृंगार - कविता - ईशांत त्रिपाठी
जड़ता के पट टूट गिरें, अब चमक उठा मन द्वार हो, जब से मन में दीप बने है, हिन्दी कवियों के काव्य हो। कौन जरा, क्या व्याधि, क्यों तमस तहल…
हिन्दी - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
कभी छाया में कभी प्रयोग की धूप में बैठ गई। रीति के कोमल भावों से, बिहारी की गहराई में, घनानंद की भावुकता का, कम्बल ओढ़ के बैठ गई। कबीर…
गुड़ शहद और मिश्री जैसी मीठी अपनी भाषा है - ग़ज़ल - कमल पुरोहित 'अपरिचित'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 2122 212 गुड़ शहद और मिश्री जैसी मीठी अपनी भाषा है, शुद्ध सुंदर अति म…
हिंदी भाषा - कुण्डलिया छंद - सुशील शर्मा
1 लहराती द्युति दामनी, घोल मधुरमय बोल। हिंदी अविचल पावनी, भाषा है अनमोल॥ भाषा है अनमोल, कोटि जन पूजित हिंदी। फगुवा रंग बहार, गगन मे…
मैं हिंदी हूँ - कविता - सुनील गुप्ता
मैं हिंदी हूँ, भाषा मैं सिखाती हूँ। जन्म देकर संस्कृत ने मुझको, अपनी छाँव में पाला है, ताज बनाकर अपने मुकुट का, हिंद ने मुझे संभाला है…
हिंदी - कविता - इन्द्र प्रसाद
यह संस्कार की भाषा है, इससे उन्नति की आशा है। यह भरती गागर सागर में, इसकी ऐसी परिभाषा है। यह सूर कबीरा की भाषा, यह तुलसी मीरा की भाषा।…
हिन्दी! तुम सबसे सुंदरतम - कविता - राघवेंद्र सिंह
मधुमिश्रित, कलित, पुरातन तुम, भारत के अंतस निवासिनी। हो मातृ संस्कृत से उद्धृत, रति सी तुम कोमल सुहासिनी। हो दिव्य भाल पर बिंदु सरिस, …
हिन्दी - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
मिली एक महिला कल मुझको, सुस्त और रोई सी थी किन्ही दुखों के कारण वो, अपने ग़म में खोई सी थी। माथे पर उसके मुकुट सजा, जर्जर था बहुत पुरा…
हम भारत की शान है हिन्दी - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
हम भारत की शान है हिन्दी, राजभाष प्रतिमानक हिन्दी। भारत मान धरोहर हिन्दी, भाल वतन है बिंदी हिन्दी। सरल सुबोधा अधिगम हिन्दी, सब जन भावन…
अँधियारों के पास रहा हूँ - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
अँधियारों के पास रहा हूँ, उजियारों से दूर। अँधकार नें सदा किया है, पथ दर्शन भरपूर। कितना प्यार मिला है उनसे कितना है अनुराग? दु:…
हमदर्द बन के कोई, हमें दर्द दे गया - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
अरकान: मफ़ऊल फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन तक़ती: 221 2121 1221 212 हमदर्द बन के कोई, हमें दर्द दे गया, खुख चैन छीन, आह हमें सर्द दे गया…
सत्य की कठोरता को कौन झेल पाता नित्य - कवित्त - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
सत्य की कठोरता को कौन झेल पाता नित्य, काव्य में रसत्व का आनन्द नहीं होता तो। रूखे सूखे ज्ञान को भी सरस बनाता कौन, कवि जो स्वतन्त्र स्व…
बीमारी - कविता - विनय विश्वा
बीमारी में शरीर चारों खाने चित्त हो जाती है बस आत्मा रहती है विचार धीरे धीरे सुप्त होने लगती है जितना अब तक जीवन जिया है उसका पुनर्चक…
शाश्वत दीप - कविता - संजय राजभर 'समित'
मेरे अंदर एक मोम है जो जलता है जलते-जलते एक दिन बुझ जाता है फिर जन्म लेता है फिर यही प्रक्रिया– हमेशा जलता रहे तो चलना पड़ेगा समझना पड…
कविता! तुम सबसे सुंदरतम - कविता - राघवेंद्र सिंह
निरुपम सृष्टि का सृजनहार, सौन्दर्य रोह तुम हो अनुपम। स्वरबद्ध, अलंकृत, छंदयुक्त, कविता! तुम सबसे सुंदरतम। तुम भावों का परिधान पहन, लगत…
जीवन - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
तन में है अगन जीने की, इच्छा का तिल-तिल मरना। सत्य-पोश लोगों का, यूँ पल-पल रोज़ बदलना। कहा-सुना सब त्यागे? और ख़ुद से कहना सीखें। जीवन क…
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