मैं हिन्दी हिंदुस्तान की,
गाथा अमर सुनाती हूँ।
हूँ गौरव हर ललाट का,
हर प्रांत में पाई जाती हूँ।
गीत, संगीत, भजन, कहानी,
और साहित्य का हूँ आधार।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण,
है संपूर्ण भारत मेरा परिवार।
है मुझमें शब्दों की मिठास,
सँजो रखा स्वर्णिम इतिहास।
कला संस्कृति का दर्पण हूँ,
हाँ भारत के मन का संगम हूँ।
इंद्रधनुष के रंगों सी सजी हूँ,
हाँ हिन्द के कण-कण में बसी हूँ।
सरल सहज हूँ भावों की भाषा,
मिले सम्मान यही है अभिलाषा।
हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल' - कोरबा (छत्तीसगढ़)