बीमारी में शरीर
चारों खाने चित्त हो जाती है
बस आत्मा रहती है विचार धीरे धीरे सुप्त होने लगती है
जितना अब तक जीवन जिया है
उसका पुनर्चक्रण हो जाता है
सच में देह दीदार कराती दरिया से, जिसमें दिल, दिमाग़, विचार की एक सम्पूर्ण दायरा होता
जहाँ जीवन सुगम बनाने की कोशिश होती है ताकि
देह की दैहिक अवस्था बनी रहे।
बीमारी में तीन ही सबसे
नज़दीक होते हैं
एक माँ
एक पत्नी और एक संतान
जो इस संसार को अपनी
मज़बूत रिश्तों में बाँधे रखती हैं
जैसे गंगा में पानी का होना।
विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)