कविता! तुम सबसे सुंदरतम - कविता - राघवेंद्र सिंह

कविता! तुम सबसे सुंदरतम - कविता - राघवेंद्र सिंह | Hindi Kavita - Kavita Tum Sabse Sundartam. Hindi Poem About Poem. कविता पर कविता
निरुपम सृष्टि का सृजनहार,
सौन्दर्य रोह तुम हो अनुपम।
स्वरबद्ध, अलंकृत, छंदयुक्त,
कविता! तुम सबसे सुंदरतम।

तुम भावों का परिधान पहन,
लगती वनिता सी स्वयं रम्य।
मृदु स्वरित् , ध्वनि का अवलिहार,
कर जाती जीवन-पथ सुरम्य।

पढ़ लेती हो कवि का अंतस, 
जीवन में व्याप्त विषमताएँ।
नश्वर जीवन का बन उल्लास,
गढ़ लेती हो निज क्षमताएँ।

मधुयुक्त सुधा का कर प्रवाह,
हर लेती विस्तृत उद्भित तम।
स्वरबद्ध, अलंकृत, छंदयुक्त,
कविता! तुम सबसे सुंदरतम।

तुम निर्जन वन की स्वयं काँति,
प्रकृति की पूर्ण कलाकृति हो।
तुम सांध्य, रात्रि अरु हो प्रभात,
तुम कारा बद्ध हृदय कृति हो।

तुम कवि मन, स्वप्न छटा कोई,
तुम हो सागर का तन अथाह।
उन्मुक्त भाव का हो विचरण,
शाश्वत, चिर, उद्गारित हो आह।

तुम आनंदित अनुभूति स्वयं,
तुम हो अनुवादित स्वप्न नवल।
तुम करुणा, प्रणय, हास्य बंधन,
तुम आह्लादित हो कँवल धवल।

हो पूर्ण प्रकृति शृंगार स्वयं,
अनुराग-राग तुम अत्युत्तम।
स्वरबद्ध, अलंकृत, छंदयुक्त,
कविता! तुम सबसे सुंदरतम।

तुम हो शैशव की शब्द अवलि,
तुम ही यौवन का हो अनुभव।
तुम हो उत्सुकता, धैर्य स्वयं,
तुम असंभाव्य में हो सम्भव।

तुम अभिव्यंजना विचार स्वयं,
तुम सरल-तरल हो सरित धार।
तुम कांत प्रणय का हो अलाप,
तुम कवि का कल्पित स्वप्न हार।

तुम पूर्ण स्मरण का विधान,
तुम स्वयं अश्रु का हो निवास।
तुम में बसता सम्पूर्ण विश्व,
तुम कवि के हर क्षण का उजास।

तुम हो हर कवि की प्रतिछाया,
धरती से अम्बर सर्वोत्तम।
स्वरबद्ध, अलंकृत, छंदयुक्त,
कविता! तुम सबसे सुंदरतम।


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