हिंदी का अस्तित्व - कविता - दीपा पाण्डेय

हिंदी का अस्तित्व - कविता - दीपा पाण्डेय | Hindi Diwas Kavita - Hindi Ka Astitv - Deepa Pandey, हिंदी भाषा पर कविता, Poem On Hindi Language
आज़ादी का बिगुल बजा था
स्वप्न सँजोई थी हिंदी,
मेरा ही वर्चस्व रहेगा
यही सोचती रहती थी।

सोलह बरस जब बीत गए थे
अंग्रेजी ही छाई थी,
सम्पूर्ण राष्ट्र के एक कोने में
हिंदी चुप्पी साधी थी।

जन-जन को पुकार रही हूँ
हिंदी हूँ मैं हिंदी हूँ,
आर्यों की पवित्र धरा में
युगों-युगों से छाई हूँ।

सूर कबीर तुलसी कवियों ने
पोथी से अमरत्त्व दिया,
मुगलों के हाथों से ही तो
जनकवियों ने मुक्त किया।

शृंगार की रति से अलंकृत हूँ
मैं हिंदी हूँ मैं हिंदी हूँ,
अक्षर ज्ञान के शब्दों में 
सरिता की जलधार हूँ।

कविजन ह्रदय की कुटिया में 
मेरी छवि द्युतिमान हूँ,
वीणा पाणि की वाणी से 
शब्दों का गुणगान है।

माधुर्य भाव के रस में डूबी
कोशों का भंडार हूँ,
वीरों की जयनाद से गुंजित
कविताओं की शान हूँ।

हिंदुस्तानी के अधरों में
मेरा ही यशगान हो,
हिंदी हूँ मैं हिंदी हूँ
राष्ट्र में पहचान हो।

दीपा पांडेय - चम्पावत (उत्तराखंड)

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