मैं हिन्दी हूँ - कविता - गणेश भारद्वाज

मैं हिन्दी हूँ - कविता - गणेश भारद्वाज | Hindi Kavita - Main Hindi Hoon. Hindi Poem On Hindi Language. हिंदी भाषा पर कविता
मैं भारत के जन-जन की बोली हूँ,
कितनी ही बहनों की हमजोली हूँ।
जनमानस के प्राणों में बसती हूँ,
तुतलाते बोलों से में हँसती हूँ।

पढ़ने लिखने में मतभेद नहीं है,
जन-जन की वाणी हूँ खेद नहीं है।
सबकी हूँ मुझ में लिंगभेद नहीं है,
सब बोलें कोई रंगभेद नहीं है।

मैं राष्ट्र के मस्तक की बिंदी हूँ,
हाँ, मैं भारत की प्यारी हिन्दी हूँ।
पूर्व से पश्चिम को मिलवाती हूँ,
उत्तर से दक्षिण को भी जाती हूँ।

मैं संत कवियों की मुखरित वाणी हूँ,
आर्य भाषाओं की मैं रानी हूँ।
अपना आकार बढ़ाती रहती हूँ,
जनहित में निरंतर ढलती रहती हूँ।
 
भारत राष्ट्र का मैं निज गौरव हूँ,
विभिन्न फूलों का संचित सौरभ हूँ।
मैं हिन्दी हूँ जन-जन की भाषा हूँ,
राष्ट्र एकता की एक परिभाषा हूँ।

गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)

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