अँधियारों के पास रहा हूँ,
उजियारों से दूर।
अँधकार नें सदा किया है,
पथ दर्शन भरपूर।
कितना प्यार मिला है उनसे
कितना है अनुराग?
दु:ख के पल में सजल नयन से
झलके अरे! विराग।
उनका है संसार अकेला
पीड़ा केवल राग।
अँधियारे अस्मिता छिपाए
जीते खाकर साग।
अँधियारों में नूर छिपे हैं
उजियारे मद चूर।
दुर्दिन देखे अँधियारों नें
उजियारे जागीर।
अँधियारों के घर सूने हैं
उजियारों के भीर।
अँधियारों का चंदा साथी
उजियारों का सीर (सूरज)।
अँधियारे कितने असुरक्षित
वे रक्षित प्राचीर।
अँधियारों की ओर चले हैं
उजियारों के शूर।
अँधियारों ने बेटी ब्याही
उजियारों के ठाँव।
प्रेम न शान्ति मिली बेटी को
आह! न स्नेहिल छाँव।
कर दहेज़ की माँग, न पाए
टिक बेटी के पाँव।
उजियारे कितने कलुषित हैं
प्यारा मेरा गाँव?
छद्म भरे घर उजियारों के
वे हैं कितने क्रूर?
शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)