शाश्वत दीप - कविता - संजय राजभर 'समित'

शाश्वत दीप - कविता - संजय राजभर 'समित' | Hindi Kavita - Shashwat Deep - Sanjay Rajbhar Samit | Hindi Poem On Eternal Lamp. शाश्वत दीप पर कविता
मेरे अंदर एक मोम है
जो जलता है
जलते-जलते एक दिन बुझ जाता है
फिर जन्म लेता है
फिर यही प्रक्रिया–
हमेशा जलता रहे
तो चलना पड़ेगा
समझना पड़ेगा
अप्प दीपो भवः बनकर
राम, कृष्ण और बुद्ध को। 


साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos