इंद्र प्रसाद - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
हिंदी - कविता - इन्द्र प्रसाद
गुरुवार, सितंबर 14, 2023
यह संस्कार की भाषा है,
इससे उन्नति की आशा है।
यह भरती गागर सागर में,
इसकी ऐसी परिभाषा है।
यह सूर कबीरा की भाषा,
यह तुलसी मीरा की भाषा।
भावों को संचारित करती,
यह जीवन जीने की आशा।
ज्ञानामृत बरसाने वाली,
साहित्य लिए गौरवशाली।
भारत माता की शान है,
इससे अपनी पहचान है।
भारत माता के भाल पर,
देदीप्यमान जो बिंदी है।
वह अपनी भाषा हिंदी है,
हाँ अपनी भाषा हिंदी है।
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