यह संस्कार की भाषा है,
इससे उन्नति की आशा है।
यह भरती गागर सागर में,
इसकी ऐसी परिभाषा है।
यह सूर कबीरा की भाषा,
यह तुलसी मीरा की भाषा।
भावों को संचारित करती,
यह जीवन जीने की आशा।
ज्ञानामृत बरसाने वाली,
साहित्य लिए गौरवशाली।
भारत माता की शान है,
इससे अपनी पहचान है।
भारत माता के भाल पर,
देदीप्यमान जो बिंदी है।
वह अपनी भाषा हिंदी है,
हाँ अपनी भाषा हिंदी है।
इंद्र प्रसाद - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)